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कुलचिरै नायनार दिव्य चरित्र

Kulachirai Nayanar - The History of Kulachirai Nayanar
Kulachirai channelizes the Pandya king and kingdom to the Shaiva Path! 

कुलचिरै नायनार का जन्म पाण्ड्य साम्राज्य में स्थित मणमेरकुडी गांव में हुआ था। यह एक कृषि प्रधान समाज था जहाँ के निवासी अपने खेतों में फसलें उगाकर मानव जाति की सबसे भयानक रोग - भूख को मीठाते थे।

उनकी बुद्धिमत्ता के साथ-साथ कपट, झूठी प्रशंसा और अपवित्र गतिविधियों के प्रति उनकी स्वाभाविक असहिष्णुता ने पाण्ड्य राजा नेडुमारन को प्रभावित किया और राजा ने उन्हें अपने सभा में प्रधान मंत्री बना दिया। यद्यपि राजा वीर थे, उनके शासन में शैव धर्म और उसके अनुयायियों को जैनों से क्लेश का सामना करना पड़ता था क्योंकि राजा जैन धर्म के अनुयायी थे। तथापि कुलचिरै नायनार ने बिना किसी संकोच के शैवम का अनुसरण किया। वह मदुरै में भगवान सुंदरेश्वर के प्रबल भक्त थे। प्रधानमंत्री होने के कारण, राजा को सत्य के मार्ग पर ले जाना उनका कर्तव्य था। वे पाण्ड्य साम्राज्य में जैनों के अत्याचारों से निरंतर चिंतित रहते थे और समाधान की आशा कर रहे थे।

वे सदैव प्रभु से प्रेम करने वाले किसी भी व्यक्ति का स्वागत करते थे, साष्टांग प्रणाम करते थे और विनम्रता से भरे मधु वाणी बोलते थे। कोई भी सामाजिक परंपरा से क्यों न हो, उसकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो और वह अपनी परंपरा का पालक हो या ना, यदि उसके विचारों में परमेश्वर थें, तो कुलचिरै नायनार उस भक्त को मनोवांछित सेवा प्रदान करते थे। चाहे भक्त अकेले आये या समूह में, वे उनके चरणों में गिर पड़ते और उन्हें मरूद्यान का अनुभव करते थे। चाहे भक्त की संसार में प्रतिभाशाली के रूप में प्रशंसा हो या अज्ञानी के रूप में उसका उपहास या उसकि उदारता के लिए प्रशंसा की हो या दंभ के लिए उपहास, यदि उसने अपने शरीर को पवित्र भस्म का लेप लगाया हो और अपने मन में पवित्र पांच अक्षरों की आवृति कर रहा हो, तो कुलचिरै नायनार उसकि पूजा करते थे। प्रतिदिन उनके घर पर भक्तों को भोज दिया जाता था और स्वयं उनके हृदय परमानन्द के समुद्र में आप्लावित था। इस प्रकार वे प्रत्येक दिन भगवान की सेवा करते थे और प्रत्येक क्षण भगवान का स्मरण करते थे।

कुलचिरै नायनार ने एक अन्य अद्भुत भक्त, राजा नेडुमारन की रानी, मंगैयर्क्करसी, जो चोल साम्राज्य द्वारा पाण्ड्य साम्राज्य को दी गई वरदान थी, के साथ मिलकर शिवभक्तों की सेवा की। इन दोनों को राजा की सबसे अधिक चिंता थी और दोनों ने पाण्ड्य साम्राज्य में शैवम के गौरव पुनः स्थापित करने के लिए कई उपाय किये। उनकी तपस्या के फल स्वरूप, भक्तों में गंगा के समान - तिरुज्ञान संबंधर का आगमन हुआ और उन्होंने उस भूमि को शैवम से उपजाऊ बना दिया। कुलचिरै नायनार ने राजा के मन को शुद्ध करने और शैवम के सही मार्ग पर मार्गदर्शन करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने एक साधारण राजा को महान निन्राचिर नेडुमार नायनार तक पहुंचाया, जिससे पाण्ड्य साम्राज्य में शैवम के प्रकाश द्वारा जैन धर्म का अंधकार दूर हो गया। उनकी और उनकी सेवा की प्रशंसा तिरुज्ञान संबंधर ने "मंगैयार्करसी" तिरुपदिकम में की है, जिसे उन्होंने पाण्ड्य साम्राज्य में प्रवेश करते ही गाया था। वह शैव धर्म का मार्ग, जिस पर कुलचिरै नायनार को विश्वास था, जिसके द्वारा भगवान की आराधना और उनके भक्तों की सेवा करने की अपनी परंपरा के प्रति वे दृढ़ रहे, तब भी जब उनके मित्र और राजा शैव धर्म के विरुद्ध थे और अंततः उन्होंने शैव धर्म के दीप को पुनः प्रज्वलित किया, सदैव हमारे मन में रहें।
 

 

गुरु पूजा : आवणि / अनुशम या सिंह / अनुराधा  

हर हर महादेव 

See also:
1. thirunyanachampandha nayanar
2. chundharar 
3. Thilakavathiyar 

63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र 


 

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