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अरिवाट्टाय नायनार दिव्य चरित्र

चोल राज्य की उपजाऊ भूमि में जहाँ पोन्नी (कावेरी) नदी बहती है, वहाँ एक गाँव गणमंगलम है। यहाँ स्वर्ण फसलों से पूरित खेतों के बीच कमल के हरे पत्तों से भरे तालाब हैं, जो हमें भगवान शिव के अङ्क पर बैठी शक्ति का स्मरण कराती हैं। 
 

Arivattaya Nayanar - The History of Arivattaya Nayanar
अरिवल थायनार ने अपने भूख स्तिति में भी भगवान शिव को भोग खिलाया!

यहाँ किसान कुल में जन्मे तायनार रहते थे।  वे नैतिक मूल्यों का अनुसरण करते हुए अपना वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे थे।  धरती पर हल जोतकर संसार की क्षुधा को शांत करने हेतु वे अपना वंशानुगत व्यवसाय - कृषि - का पालन कर रहे थे। वे संसार और हृदय दोनों से धनवान थे। तायनार की आर्थिक संपदा को तो परिमाणित किया जा सकता था, किन्तु शिव के पवित्र चरणों के, जिसे हरि और विरिंची भी नहीं पा सके, प्रति उनकी सेवा को परिमाणित करना असंभव था।  एक पुरानी तमिल कहावत है, "मृदु  आम वह खाना खिला सकता है जिसे एक माँ भी नहीं खिला पाती"। शिव के प्रति उनका प्रेम अपनी माँ से भी अधिक था। उनकी दैनिक भगवत सेवा उच्च कोटि के चावल के साथ अम्लान पालक और मृदु  आम (मावडु) अर्पण करना था। उन्होंने भगवान के प्रति अपने प्रेम के साथ यह सेवा की। शिवभक्ति ही तो वह रस है जिसके स्वाद को इस जगत में प्रत्येक मनुष्य को अवश्य चखना चाहिए।

वे, हमारे प्रभु, तायनार की सेवा को संसार के समक्ष प्रकाशित करना चाहते थे। उन्होंने धीरे-धीरे तायनार की संपत्ति को समाप्त कर दिया। लेकिन तायनार अपनी संपत्ति कैसे खो सकते थे? अन्य लोग जिसे धन समझते थे, उसके अभाव में भी उनके पास पूजा और सेवा का धन बना रहा। उन्होंने दूसरों के लिए खेती का काम करना प्रारंभ कर दिया। वेतन के रूप में उन्हें जो चावल मिलता था, वे उन्मे से सर्वोत्तम कोटि चावल के दाने निराकार भगवान के लिए सर्वोत्तम भोजन बनाने के लिए आरक्षित कर देते थे। अपने ओर अपने परिवार के लिए वे निम्न कोटि चावल के दानों का प्रयोग करते थे। अब अज्ञेय भगवान ने उस स्थिति में भी परिवर्तन कर दिया। प्राकृतिक आपदाओं के कारण खेत सूख गए, तायनार को अपनी सेवा निरंतर रखने के लिए कहीं भी काम नहीं मिला। किन्तु भगवान की सेवा करने का उनका दृढ़ संकल्प उससे कहीं अधिक था जिसे कोई भी स्तिथि परिवर्तित नहीं कर सकती थी। उनकी पत्नी ने, जो अपने पति की सेवा में अरुन्दती के समान थीं, ऋण प्राप्त करने के लिए अपने आभूषण, घर, और बर्तन सुरक्षा के रूप में दे दिए। इस प्रकार तायनार ने उस पैसे का उपयोग किया और बिना बाधा के भगवत सेवा किया। यहाँ हमे एक आदर्श पति-पत्नी का उदाहरण मिलता है जिन्होंने किसी भी स्तिथि में उच्च नैतिक मूल्यों और उदारता का त्याग नहीं किया। यही तो वैवाहिक जीवन का सार है। 

एक दिन, जैसा उनकी दिनचर्या थी, तायनार एक टोकरी में चावल, जो उनके प्रेम के समान शुद्ध था, स्वादिष्ट पालक और मृदु  आम ले जा रहे थे। उनकी पवित्र हृदय वाली पत्नी गाय से प्राप्त पाँच पवित्र सामग्रियों - पंचगव्य - के साथ उनका अनुसरण कर रही थी। जबकि उन्होंने प्रभु को, जो भूख से अनभिज्ञ थे, सर्वोत्तम भोजन दिया, वे भूखे अपने दिन बिता रहे थे। इसका असर हुआ और, उस दिन, थकान के कारण तायनार गिर पड़े और उनके साथ टोकरी में रखा सारा सामान भी गिर गया। पति को बचाने के प्रयास में पीछे चल रही उनकी पत्नी के हाथों से भी पंचगव्य गिर गया। उन्हें अपनी अवस्था पर नहीं अपितु अपने कर्तव्य को पूरा न कर पाने के बारे में सोच कर बहुत बुरा लगा क्योंकि उन्होंने भगवान शिव के लिए बनाया गया भोजन गिरा दिया था। भूख से बिलखते सूकर के बच्चों को दूध पिलाने वाले भगवान के लिए भोजन अर्पित करने का आशीर्वाद न मिलने के कारण वे अत्यंत दुखी हो गए। उन्होंने अपनी गर्दन काटने के आशय से अपना खंजर निकाल लिया। उसी क्षण कृपालु भगवान के स्वर में "कृपया छोड़ो ! छोड़ दो!" सुनाई दिया मृदु आम खाने की ध्वनि के साथ और भक्त का हाथ पकड़ते हुए प्रभु प्रकट हुए। जैसे ही ब्रह्मांड के सभी प्राणियों को आशीर्वाद देने वाले सर्वशक्तिमान के हाथ ने तायनार के गर्दन को स्पर्श किया, उनकी गर्दन का घाव उनके कर्मों के साथ ओझल हो गया। हाथ जोड़कर और अपार भक्ति के साथ, उन्होंने उस परशिव की स्तुति की जो अपनी शक्ति के साथ पवित्र बैल पर प्रकट हुए थे। वरदान देने वाले ने पति-पत्नी के प्रेम की प्रशंसा की और उन दोनों को अपने और मृदु  आम साथ रहने के लिए बुला लिया। चूँकि उन्होंने उमापति की सेवा पूरी न कर पाने की निराशा के कारण अपनी गर्दन काटने का प्रयास किया था, इसलिए उन्हें अरिवाट्टाय (अरिवाल तायनार ) का नाम मिला। अरिवाट्टाय नायनार का समर्पण, जो गंभीर समस्याओं के बीच भी भगवान की सेवा करने के लिए तत्पर थे, हमारे मन में सदैव रहे।

गुरु पूजा : तै / तिरुवदुरै या मकर / आर्द्र 

हर हर महादेव 

 

63 नायनमार - महान शिव भक्तों का चरित्र 


 

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